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24 GHANTE KI ULJHAN

24 घंटों की उलझन                   

लेखक-महेश (टिंकू माही)                                 CLICK HERE TO DOWNLOAD

'क्या 71 मिस काॅल्स'
इतनी काॅल्स तो पूरे महीने में नही आई थी मैं सोच ही रहा था कि दुबारा मेरे फोन की घन्टी बजी। 
फोन पर काॅल अपरिचित नम्बर से आ रही थी तो मेरे दिमाग में अनेको प्रश्न हिलोरे मारने लगे। 
(मैं कई दिनों से बीमार होने के कारण अपने घर बरेली आया हुआ था)
मैंने फोन को उठाया और काॅल रिसीव की 'दूसरी तरफ से आवाज आई '
'क्या आप महेश बोल रहे है'
मैंने हां में जवाब दिया
'मैं आपके रूम के पास की बैंक के पास खड़ा हुं मेरा नाम के. के. है मैं आपके रूम पार्टनर के ऑफिस में काम करता हुं'
मैंने कहा- ठीक हैं बताईये क्या हुआ है
'आपके रूम पार्टनर के साथ कल रात शराबियों ने लूट पाट की है और उनके सर पर गहरी चोट लगी है वो अभी दिल्ली के एक हास्पिटल में ICU में है'

मेरे अन्दर जो हल्की फुल्की नींद थी वो अचानक ही उड़ गई , मैं कई सारे सवालों से घिर गया , ये क्या हो गया , ये कैसे हुआ , मेरा दोस्त तो बहुत सीधा है ,अभी वो कैसा होगा ।

'आप कहां है , उन्हें जितेंद्र के घरवालों का नम्बर नहीं मिल रहा है , आप यहां आ जाईये, तुरन्त घरवालों को बुलाना होगा , उसकी हालात काफी गम्भीर है'

के.के. की बातें सुनकर मैं तुरन्त ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और बोला -  'जी मैं तो अभी अपने घर बरेली आया हुआ हूं और मेरे पास उसके घरवालों में किसी का नम्बर भी नहीं है मैं कोशिश करता हुं कि खबर जितेंद्र के घरवालों तक पहुंच जाये।

(के.के. को मैंने आपनी सारी स्थिति के बारे में बताया, मेरी बात सुनकर के.के ने मुझे चिंता न करने को कहा और कहा अगर आप यहां नहीं आ सकते तो कोई बात नही हम सब यहां है। बस घरवालों से बात हो जाये तो थोड़ी राहत मिले)

( काफी मशक्कत और कई लोगों से बात करने के बाद आखिरकार नम्बर मिला और सूचना मिलते ही जितेंद्र के घरवाले दिल्ली रवाना हो गये) 

मैंने थोड़ी राहत ली, 
पर क्या इस संकट के समय मुझे उसके पास नही होना चाहिए , अगर मैं दिल्ली नहीं गया तो जिंदगी भर मुझे इस बात की आत्मग्लानि होती रहेगी, मैं काफी तरह से बातों को सोच रहा था कि मुझे परेशान देख पिता जी ने मुझसे कहा - 
'महेश परेशान न हो , अभी तुम काफी कमजोर हो वहां जाने से तुम्हारी तबीयत ज्यादा खराब हो सकती है, वहां कोई देखभाल के लिए भी नही होगा'

'पर जितेंद्र का क्या मैं तो तब भी बोल पा रहा हुं , खा पा रहा हुं पर उसकी क्या हालात होगी ये जाने बिना मुझे चैन नहीं आयेगा'

इतना बोलने के बाद मैंने मां से बैग पैक करने को कहा और दुपहर की 2 बजे की बस से दिल्ली के लिए निकल पड़ा।

बस में सीट मिल गई थी बैग में दवा और कुछ खाने का सामान लेकर मैं 6 घन्टे के अन्दर दिल्ली में पहुंचने का अनुमान लगाने लगा कि तभी फोन की घंटी बजी 
करुनाकर का फोन आ रहा था - मैंने फोन पिक किया

'हैलो सर'
'हैलो करुना'
' सर अभी पता चला जितेंद्र के साथ लूट और मारपीट हो गयी है। ये सब क्या हो गया , कल शाम ही वो मुझसे बात करके ऑफिस के लिए निकला था , पहली ही शिफ्ट थी नाईट की, तो आप आ रहे है क्या, '

' हां मैं आ रहा हुं ' 'शायद 8 बजे तक पहुंच जाउगा'

' ठीक है सर मैं भी उसी समय हास्पिटल आता हुं आपसे कुछ बात शेयर करनी है'
' ठीक है '

मैं हास्पिटल पहुंचने में दो घन्टे लेट हो गया , वहां पहुंचने पर हास्पिटल रिसेप्शन से जानकारी ली, तो पता चला
जितेंद्र ICU में है और घरवालों में, जितेंद्र के मामा जी यहां आ गये है जो वेटिंग रुम में है । मैं वेटिंग रुम में गया और वहां जितेंद्र के मामा मुझे मिले । मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और फिर जितेंद्र से सम्बंधित बातें हम लोग करने लगे। डाॅक्टर ने बताया था कि आने वाले दो दिन उसकी जिंदगी के महत्वपूर्ण दिन हैं । जितेंद्र अभी कोमा में था । उसे देखने के बाद मैं मामा जी से रुम पर चलने को कहा और कल दुबारा मुलाकात का आश्वासन दिया। मामाजी ने मुझे आराम करने को कहा , जरूरत होगी तो मुझे बुला लिया जायेगा।

मैं राहत महसूस कर रहा था। मेट्रो में बैठा मैं रुम के लिए निकल पड़ा। तभी करुना का दुबारा फोन आया - 
' सर साॅरी मैं हास्पिटल नहीं आ पाया' 
' कोई बात नहीं ', ' तुम कुछ बता रहे थे  '

सर वो न मैं आपको बताना चाह रहा था कि .... 
(वो इतना बोल कर रुक गया) 
मैंने बोला - क्या हुआ बताओ
हैलो हैलो करुना मेरी आवाज आ रही है ?

हाॅ ' आपकी आवाज आ रही है सर '

बताओ क्या हुआ है

' सर वो न जब आप घर गये हुए थे तो आपकी बिल्डिंग में एक हादसा हो गया है।
आपके बराबर वाले रुम वाली भाभी ने फांसी लगा कर जान दे दी थी। और उसके बाद बिल्डिंग में सारे लोग रुम छोड़कर चले गये है। बिल्डिंग में केवल हम 5 या 6 लोग ही बचे है। '

'मेरे दिमाग जो अभी शान्त हो पाया था ये बात सुनकर चौंक गया, मेरी सीट्टी पीट्टी गुम हो गई, मैं कमजोर दिल का आदमी था बचपन से ही अंधेरे और सायों से मुझे डर लगता था , मेरी हिम्मत जवाब दे गयी ।

जहां मैं कुछ देर पहले जितेंद्र के बारे में सोचकर उदास था तो वहीं अब मुझे अपनी चिंता सताने लगी । 
बेटा अब तेरा क्या होगा अकेले तो तेरे से रहा नहीं जाता अब क्या करेगा। 

'हैलो हैलो' 
करुना बराबर बोल रहा था 

(मैं वापस वास्तविक दुनिया में आ गया)
हां मैं सुन रहा हुं करुना- मैने कहा
'ठीक है सर बस ये ही बताना था मैं कल सुबह आपसे मिलूंगा'- करुना ने कहा

'ठीक है' (काफी सहमें स्वर में मैं बोला)

मैं नोएडा पहुंच गया रात के बारह बजे है रास्ते भर में आपने जीवन भर सुने तरह तरह की भूतनियों के बारे में सोच कर में डरा जा रहा हुं। 

'ये क्या गली में इतना अंधेरा'
लगता है आज मेरे जीवन का आखिर दिन हैं बहूहूहू
डरा सहमा हल्के हल्के गली से मैं गुजरने लगा । गेट पर कोई नहीं था । मैं अन्दर घुस ही रहा था कि  अचानक एक अजीब सी आवाज हुई ...... मैं चौंक गया । तभी एक साया अधेंरे से आता दिखा उसके हाथ में टार्च देखकर मेरी सांस में सांस आयी।

'सर आप कौन मैं बिल्डिंग का नया गार्ड हुं' - उसने कहा
'कैसे भी मैं बिल्डिंग के अन्दर घुसा'
‘मैं महेश रुम नंबर बी 13 में रहता हुं आज ही आया हुं’ मैंने गार्ड से बोला
'सर आपको पता है आपके बराबर वाले रुम......' गार्ड ने कहा
'चुप रहो' मैंने कहा
फिर मैं बिना मुड़े व इधर-उधर देखे रुम की तरफ चलने लगा।

मैं रुम के सामने पहुंच गया , कैसे भी करके मैंने चाबी तो बैग से निकल ली लेकिन हड़बड़ाहट में चाबी हाथ से छुट कर फर्श पर गिर गई। बिल्डिंग में कोई न होने के कारण इतना सन्नाटा था कि चाबी गिरने की आवाज से मैं चौंक पड़ा। मुझे हर छोटी से छोटी चीज अब डरा रही थी। दीवार पर छिपकली को देखा तो लगा जैसे वो मुझे किसी भी क्षण खा जाएगी। छिपकली मुझे किसी बड़े डायनासोर की तरफ लग रही थी। मैंने लपक कर चाबी उठ ली। 

पर मैं क्या देखता हुं ये तो चाबी नहीं है चाबी की जगह जल्दबाजी में कोई लकड़ी का टुकड़ा मैंने उठा लिया था। मोबाइल से फ्लैश लाइट जलाकर जब मैंने इधर उधर छाना तो मुझे चाबी बगल वाले रुम के गेट के सामने दिखी।

ये चाबी वहां कैसे पहुंच गयी । मेरा दिमाग मुझसे ये सवाल करने लगा। मैं चाबी को उठाने के लिए झुका कि फिर मैं अपना ही साया देखकर डर से वही गिर पड़ा। कमरे के बाहर आज एक अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ। घड़ी की टिक टिक पूरे माहौल को और डरावना बना रही थी। 

ताला खोलकर मैं अपने रुम में ज्यो ही घुसा कि लाइट आ गयी। लगा कि जैसे भगवान को मेरे ऊपर तरस आ गया है शायद । रुम में बिखरे पड़े सामान को देखकर मुझे लगा कि पता नही मैं किस जगह आ गया हुं । मैंने अंदाजा लगाया शायद जितेंद्र यहां नहीं रह रहा था।

सारा सामान समेटने के बाद , रुम को साफ करके जैसे ही मैं बिस्तर पर लेटा , मैं तुरन्त ही सो गया। रात के 3 बजे अचानक कुत्तो के भौंकने की आवाज से मेरी नींद खुल गई। 

अब ये क्या आफत है इनकी क्यों नानी मर रही है अब इतना सोचकर मैं बिस्तर से उठकर बाहर की तरफ बढ़ा ही था कि मुझे बराबर वाले रुम की याद आ गई । नींद से अचानक उठने के कारण दिन भर की सारी बातें में भुल गया था कुछ पल के लिए।

मुझे लगा कुत्तो ने शायद किसी को देख लिया है , नहीं तो इतनी रात गये इससे पहले तो कभी नही भौंके थे। 
भौं भौं ....... भौं भौं.... लगातर कुत्तो का भौंकना चालू था। इधर मेरा दिल की धड़कन भी भौंकने के सुर से ताल मिला रही थी। धक धक.. भौं भौं...धक धक... भौं भौं....

काफी देर के बाद अचानक सबकुछ शान्त हो गया । एकदम सन्नाटा मेरे कानों में झींगुर की आवाज के अलावा बस घड़ी की टिक टिक ही सुनाई पड़ रही थी।
रुम में लगा बल्ब एकदम से फट पड़ा , पंखा जोर जोर से हिलने लगा। रुम के वातावरण में अचानक ही गर्मी बढ़ने लगी। टेबल , घड़ा , टीवी सब चीजे जोर जोर से हिलने लगे। मोबाइल की फ्लैश लाइट भी साथ नही दे रही थी। 


फिर वो हुआ जिसका मुझे डर था । एक तेज रोशनी के साथ एक साया मेरे सामने था। पसीने पसीने मैं भगवान को याद करने लगा। 

फिर सभी चीजें शान्त हो गयी। साये से आवाज आयी। मैं तुम्हें परेशान करने नहीं आयी हुं ।बस मेरी इक आखिरी इच्छा है। मेरे बच्ची का ख्याल रखना उसका भविष्य अब आप सब लोगों के हाथ में है। मैं बस इतना कहने के लिए ही यहां आई हुं। वो तस्वीर की निगेटिव की तरफ दिख रही थी। वो साया डरावना नही था। पर दूखी जरुर लगा। फिर रोशनी हल्के हल्के सामान्य हो गई। बल्ब भी वापस पहले जैसा हो गया। मैं एक टूक बस उस दिशा में ही अब भी देख रहा था।



इतने के बाद सब कुछ पहले जैसा था। मैं भी जैसा सोचता था उसका उल्ट पाकर शान्त सोचने लगा। सब एक से नहीं होते जरुर कुछ मजबूरी रही होगी जिसके कारण उसने अपनी जिंदगी से अपना नाता तोड़ लिया होगा। सोचते सोचते मैं फिर सो गया।

अगली सुबह मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था । सबसे पहले उस बच्ची के बारे में जानकारी निकाली। पता चला वो अपने रिश्तेदारों के पास सुरक्षित है । फिर हास्पिटल के लिए निकल पड़ा। 

लगभग 10 दिनों के बाद जितेंद्र भी ठीक होकर रुम पर आया और पूरी तरह से ठीक होकर वापस रुम पर आने का वादा करके वो अपने मामा जी के साथ कानपुर चला गया।

मैं रोज उस बंद दरवाजे को देखकर बीते यादों को सोचकर अभी मुस्कुरा देता हुं। जिंदगी का कुछ पता नहीं , तो जितने भी दिन जियो जी भर मुस्करा कर जियो।

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